बीपी मंडल साजिशकर्ता कैसे ?

बीपी मंडल(यादव) की साजिश
1967 में बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी
संयुक्त विधायक दल जिसमें शोषित दल, कम्युनिस्टों, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी आदि का गठबंधन था.
उस समय बीपी मंडल मधेपुरा से सांसद थे और जिस पार्टी संशोपा से वो सांसद थे उसके संविधान के तहत कोई सांसद,प्रदेश अध्यक्ष राज्य में कोई पद नहीं ले सकता मगर सत्ता के लालची बीपी मंडल इसके पूर्व की सरकार में सांसद रहते हुए राज्य में मंत्री रह चुके थे और संवैधानिक विवशता के चलते 6 महीने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.
कांग्रेस के महेश प्रसाद सिंह,रामलखन सिंह यादव और बीपी मंडल ने डील के तहत जगदेव प्रसाद की जगह सतीश प्रसाद सिंह का नाम आगे किया ताकि मंडल अपने लिए राज्यपाल से विधान परिषद की रिकमेंडेशन करवा सकें.
जबकि जगदेव प्रसाद उस दौर में शोषित वर्गों की आवाज़ बनकर उभर रहे थे और उनकी पार्टी शोषित दल इस नई सरकार का हिस्सा थी.
इस नई सरकार में मुख्यमंत्री पद के लिए कुछ नाम आगे आए — जिनमें जगदेव प्रसाद, सतीश प्रसाद सिंह, रामलखन सिंह यादव और कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग के नेता थे.
जगदेव प्रसाद की छवि तीव्र विचारधारा और तेज-तर्रार सोच की थी — खासकर शोषित पीड़ित के समर्थन और कांग्रेस विरोध की थी.
उस वक्त कई दलों को लगा अगर जगदेव बाबू को मुख्यमंत्री बनाया गया तो पिछड़ों की राजनीति उभर जाएगी और सामंतियों को खतरा उत्पन्न हो जाएगा.
नतीजा जगदेव प्रसाद की जगह सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री के लिए आगे किया गया जो जगदेव प्रसाद की अपेक्षाकृत सॉफ्ट थे,
नतीजा 5 दिनों में सरकार गिरा दी गई(इसके पीछे के भी कारण थे जिसका उल्लेख बाद में कभी करूंगा)
सिर्फ 5 दिन के लिए सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर यह दिखाया कि पिछड़ा वर्ग को भी मौका दिया जा रहा है, लेकिन असल में यह एक symbolic compromise था.
इसके बाद कांग्रेस के रामलखन सिंह यादव और महेश प्रसाद सिंह सहित तमाम संयुक्त विधायक दल ने बीपी मंडल को मुख्यमंत्री बना दिया जो करीब 50 दिन तक मुख्यमंत्री रहे.!